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Saturday, November 21, 2009

एक अच्छे आदमी ने अच्छा काम किया-
मैं
उसका सम्मान करूँगा।


एक
बुरे आदमी ने अच्छा काम किया-

मैं
उसका स्वागत करूंगा।

एक
अच्छे आदमी ने बुरा काम किया-

मैं
उसकी भर्त्सना करूँगा।


एक
बुरे आदमी ने बुरा काम किया-

मैं
उसका बहिष्कार करूँगा।

Saturday, November 7, 2009

सिलसिला

आप सोचते हैं कुछ और
कह्ते हैं कुछ और
करना चाहते हैं कुछ और
करते हैं कुछ और
होता है कुछ और !

यह देख कर लोग सोचते हैं कुछ और
कह्ते हैं कुछ और
करना चाहते हैं कुछ और
करते हैं कुछ और
होता है कुछ और !

अब आप सोचते हैं कुछ और
कह्ते हैं कुछ और
करना चाहते हैं कुछ और
करते हैं कुछ और
होता है कुछ और !

इसके बाद लोग सोचते हैं कुछ और
कह्ते हैं कुछ और
करना चाहते हैं कुछ और
करते हैं कुछ और
होता है कुछ और !

और फ़िर आप सोचते हैं कुछ और
कह्ते हैं कुछ और
करना चाहते हैं कुछ और .......
...........................
..............................

........यही सिलसिला अनवरत,
.............जिसका ओर न छोर.... !

Monday, October 26, 2009

मतलब

"आप क्या करते हैं ?"
"अपना क्या, कुछ भी कर लेते हैं"
"कुछ भी ?"
"हाँ, कुछ भी"
"मतलब ?"
"अजी, मतलब तो आप निकालते रहो"
"नहीं-नहीं, मेरा मतलब है....."
"हाँ-हाँ, सब किसी न किसी मतलब से बात करते हैं "
"आप मेरे कहने का ग़लत मतलब निकाल रहे हैं"
"तो आपका मतलब कुछ और है ?"
"बेशक !"
"तब तो आप मेरी बात को और पुख्ता कर रहे हैं"
"कौनसी बात ?"
"वही, कि सब किसी न किसी मतलब से बात करते हैं"
"अजीब आदमी हो"
"अब आप मतलब निकालने लगे ?"
"नहीं, ये तो एक बात कही है"
"ज़रूर फ़िर किसी मतलब से कही होगी"
"मैंने कहा न, मैं किसी मतलब से बात नहीं करता"
"तब तो बात करने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता"
"अरे भई, मतलब क्या है तुम्हारा ?"
"तुम क्या सचमुच बिना मतलब बात कर रहे हो ?"
"हाँ"
"तो आगे से ख़ुद का और मेरा टाइम ख़राब मत करना"
"क्या मतलब ?"
"मतलब ये, कि जब किसी से कोई मतलब हो, तो लब मत खोलना....
बिना मतलब भी अगर लब खोलोगे, तब भी कोई कोई मतलब ज़रूर निकलेगा !"

Thursday, October 22, 2009

वज़न

ज्यों ही साईकिल रिक्शा आगे बढ़ा,
मेरी जेब में पड़ा दो रूपये का सिक्का गोल-गोल घूमने लगा
जैसे-जैसे रिक्शा तेज़ होता जाता था,
सिक्का भी तेज़ घूमता जा रहा था ...साथ ही गर्म भी होता जा रहा था

साईकिल रिक्शा पूरी गति में गया
और सिक्का तो गर्म होते-होते अंगारा ही बन गया !
मैं ज़ोर से चीख पड़ा,
"अबे धीरे चला, मारेगा क्या ?"

एक झटके के साथ साईकिल रिक्शा रुक गया
रिक्शावाला नीचे उतर कर बोला,
"कोई परेशानी बाबूजी ?.....
लो, आपका ठिकाना भी गया"

मैंने रिक्शा से उतरते हुए जेब में हाथ डाला
अंगारा निकाला और उसकी तरफ़ उछाला
लाल-लाल अंगारा उसकी खुरदरी हथेली से जा चिपका
फ़िर से दो का सिक्का बन गया !

मैंने पूछा, "क्यों रे, सिक्का भारी है ना ?"
वो बोला, "हाँ बाबूजी, सही कहा
कुछ देर पहले एक आदमी जितना भारी था,
अब बिल्कुल हल्का है, पचास ग्राम मूंगफली सा हल्का !"

Sunday, October 18, 2009



















एक दीया.....
सबको बस दिया ही दिया....
जग को प्रकाश से भर दिया....
रात भर जलता रहा, हवाओं से लड़ता रहा
हँसता रहा....
कहता रहा,
"शुभ दीपावली !"

सुबह हुई, सबने देखा ,
दीये के चारों तरफ़ बिखरे पतंगे...
जले-अधजले....

कोई बोला,
"ओह.....ये दीया !
बड़ी मेहनत से सफाई की थी,
सारे घर में फ़िर से कचरा कर दिया ।"

जले हुए पतंगों के बीच रखा हुआ दीया
चुपचाप सुनता रहा लोगों की बातें जली-जली.....
जो रातभर सबसे कहता रहा था,
"शुभ दीपावली !"

Monday, October 12, 2009

एक कहानी, वही पुरानी......

आओ सुनाऊं आपको गूढ़ पते की बात ।
आओ सुनाऊं आपको रीढ़-पेट की बात ।
एक था पेट, एक थी रीढ़ ।
साथ ही रहते थे दोनों ।
पेट आगे-आगे, रीढ़ पीछे-पीछे ।
दोनों हरदम साथ-साथ,
दोनों की मगर अलग थी सोच, अलग-अलग दोनों की बात ।

पेट चाहता हरदम भरा रहना ।
रीढ़ चाहती हरदम तना रहना ।
पेट जब तक भरा रहता, रीढ़ पूरी तरह तनी रहती ।
जब पेट खाली हो जाता तब रीढ़ तनी न रह पाती ।

एक विवाद खड़ा हो जाता यहाँ से ।
पेट कहता, "मैं इस वक्त खाली हूँ भई, तू इस तरह झुक कर मुझ पर बोझ न बन रीढ़ !"
रीढ़ कहती, "बोझ कौन बनाना चाहता है, ये तो है मजबूरी मेरी ।"
पेट कहता, "मुझे तो बात समझ आई ना तेरी "

रीढ़ कहाँ चुप रहने वाली, कहती-
"रे जनम-जनम के भूखे ! तू जब खाली हो जाता है, फ़िर से तू भरना चाहता है । मैं अगर ना झुकूं तो
हवा निकल जाए सब तेरी । मेरे झुकने से ही तू पाता है रोटी ! इसे महरबानी तू मान मेरी ।"

ठंडी साँस भर कर पेट कहता-
"तेरी अकड़ ने ही तो मुझको मार रखा है, तूने तो हमेशा मुझ पर भार रखा है ।
तेरा मिथ्या 'स्वाभिमान' है, कि मैं रूखी- सूखी हूँ पाता, तू ना होती तो मैं हरदम माल-मेवा खाता !"

यूँ ही रोज़ झगड़ते थे, फ़िर भी साथ रहते थे ।
एक था पेट, एक थी रीढ़ !

Friday, October 9, 2009

चिंगारी

वो रोजाना गली से बहार निकल कर आती ।
नुक्कड़ पर खड़े साईकिल रिक्शा के पास जा कर कहती-
'महिला कॉलेज चलो ।'
अधेड़ उम्र का रिक्शावाला चुप-चाप रिक्शा चलाना शुरू कर उसे कॉलेज छोड़ आता।
एक दिन रास्ते में रिक्शावाला पूछ बैठा- 'बेटी, कॉलेज में पढाती हो ?'
'नहीं,...... पढ़ती हूँ' उसने जवाब दिया ।
'लेकिन बेटी,....देख कर तो लगता है,......'
'हाँ चाचा, शादी के बाद पढ़ाई छूट गई थी, अब उनके गुजर जाने के बाद फ़िर से......'
'ओह....यहाँ कोई रिश्तेदार ?'
'हाँ चाचा, मेरे भइया-भाभी'
'भइया को देखा नहीं कभी साथ में'
'नौकरी पर जाते हैं सुबह-सुबह । पहले मुझे स्कूटर पर कॉलेज छोड़ कर जाया करते थे,
लेकिन रोजाना 20-25 रु. का खर्च ...प्राइवेट नौकरी में कहाँ तक करते... मैंने ही मना कर दिया ।'
'लेकिन अब रिक्शा किराया....?'
'मैं देती हूँ, मेरे पति की पेंशन मिल रही है ना मुझे'
'हूँ..अब समझा, क्या चाल चली तेरे भइया-भाभी ने !.............वैसे भी बेटी, कोंन कितने दिन निहाल करता है आजकल....'

रिक्शावाले की यह बात दुनिया की आग की पहली चिंगारी बन कर उसके दिमाग से जा चिपकी !

Thursday, October 8, 2009

मैं सोना चाहता हूँ

"मैं चैन से सोना चाहता हूँ "
"तो सो जा न, रोका किसने है?"
"मगर नींद नहीं आ रही है"
"क्यों भई ?"
"चैन से सोने के लिए ज़रूरी है, कि गले में चेन न हो "
"अरे भई, चैन दिमाग में होता है, न कि गले में "
"तू नहीं समझेगा "
"क्यों ? मेरे पास दिमाग नहीं है क्या ?"
"है, लेकिन चेन नहीं है "
"फ़िर वही......"
"अरे भई, तेरे गले में चेन नहीं है,....सोने की चेन ! "
"सोने की चेन ? "
"हाँ, सोने की चेन...चेन... समझा ?"
"हाँ-हाँ.......तो ?"
"जिसके गले में चेन हो, वो चैन से नहीं सो पाता"
"क्यों ?"
"क्यों कि ये जयपुर है, यहाँ आए दिन महिलाओं के गले से चेन तोड़ने की घटनाएँ होती हैं "
"अब समझा, तू दिमाग की जगह गला क्यों बोल रहा था"
"इसका मतलब है, तेरे पास दिमाग भी है"
"सो तो है....मगर तू चाहता क्या है ?"
"सोना चाहता हूँ"
"तो गले से सोने की चेन उतार कर ताले में रख, और चैन से सो"

Sunday, October 4, 2009

आ दिवाली आ !

आ दिवाली आ .....
जगमग-जगमग आ
धूम-धाम से आ
जल्दी-जल्दी आ ।

भत्ते-बोनस ला
मुफ्त-छूट दिला
गिफ्ट-इनाम बरसा
मिठाई-मेवे खिला ।

साल भर तक की प्रतीक्षा
सबका उल्लू किया है सीधा
अब 'लिछमी' जब प्रकट हो रही,
भई रख ले, मत शरमा ।

सुख से जीने का यह जरिया,
जीवन है एक बहता दरिया
सच्चा 'अर्थ' यही जीवन का
व्यर्थ न 'चांस' गँवा ।

आ दिवाली आ,
अब तो आ ही जा !

Saturday, September 26, 2009

एक था बंदर.....

एक था जंगल....
जंगल में पेड़.....
पेड़ पर बंदर......
बंदर ही बंदर.....
वैसे तो बंदरों का पूरा झुंड ही था , लेकिन एक बंदर कुछ अलग ही था ।
सारे बंदर दिन भर धींगा-मुश्ती करते, उधम मचाते, पेड़ों पर उछलते-कूदते........
लेकिन वो एक बंदर ख़ुद उछलना-कूदना तो दूर, दूसरे उछलने-कूदने वालों पर भी अंगुली उठाता।
उनकी शिकायत बुजुर्ग बंदरों से करता । बुजुर्ग बंदर उससे कहते,"अरे भई, बंदर हैं....अपना काम कर रहें हैं...
तू भी अपना काम कर, किसी की शिकायत क्यों करता है ?"

वो बंदर नहीं माना । उसने एक बंदर को दूसरे के ख़िलाफ़ भड़काना शुरू कर दिया ।
मगर बंदरों पर कोई फर्क नहीं पडा । सब वैसे के वैसे !
वही उछल-कूद, मस्ती, धींगा-मुश्ती...... !

एक दिन सारे बंदर आर्श्चय में पड़ गए ।
वो अलग रहने वाला बंदर अपने दो हाथों को ज़मीन पर ना रख कर पिछले दो पैरों के सहारे चल रहा था ।
पेड़ों पर कभी उधम ना करने वाले उस बंदर को इस तरह अटपटे ढंग से चलते देख कर सारे बंदर
हंसने लगे ...."लो, सब की शिकायत करता था,....अब आया रास्ते पर !
.......अरे ऎसी हरकतें तो हम लोग भी करने की सोच नहीं पाते "

लेकिन वो बंदर लाइन पर नहीं आया था ।
कुछ सालों बाद सब बंदरों ने सुना, वही बंदर आदमी बन गया !!!!!!!!!!
एक था बंदर....

Wednesday, September 23, 2009

क्षमा चाहूँगा......लेकिन,....

आज श्री पुण्य प्रसून वाजपेयी के ब्लॉग में न्यूज़ स्टोरी "विकास की मोटी लकीरें" पढ़ी ।

उसी सन्दर्भ में-
जयपुर से भीलवाडा जा रहे राष्ट्रीय राजमार्ग को
यदि मैं "1,25,000 पेड़ों की कब्र " कहूँ,
तो कोई एतराज.....?

Monday, September 21, 2009

एक था रावण.....

एक था रावण.....
पराक्रमी, प्रकांड पंडित, समस्त कलाओं में निपुण,
दस दिशाओं पर एक साथ दृष्टी रखने वाला दशानन लंकेश !

सब कुछ अच्छा चल रहा था.....
एक दिन उसकी बहन अपने अपमान का समाचार ले कर उसके पास आई ।
रावण ने अपनी बहन के अपमान को चुनौती माना, और अपमान के प्रतिशोध का संकल्प ठाना ।
बस, यहीं से गड़बड़ हो गयी....!

बैठे-बिठाए लड़ाई मोल ले ली ।
उनसे, जिन्होंने उसकी बहन का अपमान किया था......
उनसे, जो उसके अपने थे, लेकिन उससे सहमत नहीं थे.....
उनसे, जो उससे सहमत तो थे, लेकिन अपने हितों को देखते हुए साथ देने को तैयार नहीं थे.....
उनसे, जो साथ तो दे रहे थे, मगर बेमन से.....!

आख़िर वही हुआ, जो होता आया है ।
सब के बीच बुरा बन गया बेचारा !
कौन कहता है, एक अकेले राम ने उसे मारा !

और तो और,....... लोग तो उसे आज तक मार रहे हैं !
बांस की खपच्चियों से खोखला पुतला बना कर उसमें भूसा और बारूद भर कर
मौत के घाट उतार रहे हैं ....
हर साल !

वही लोग....दस मुंह, दस बात ....लेकिन,.....
वो अकेला ही कहलाया दशानन !
एक था रावण.....!

Friday, September 18, 2009

दर्शन

काफी दिनों से बीवी पीछे पड़ी थी, कि ज़रा अपना 'स्टेटस' देखो....एक कार तो हमारे पास
होनी ही चाहिए ।
आख़िर वो कार ले ही आया, और पॉश कोलोनी में अपने घर के आगे खड़ी कर दी ।
'सब से पहले गणेश मन्दिर चलेंगे' बीवी ने चहकते हुए कहा ।
'पुराने घर से माँ- बाऊजी को भी साथ ले लें, उन्हें कार लाने की ख़बर भी हो जायेगी' कह कर उसने बीवी का मूड भांपने की कोशिश की ।
बीवी ने नाक सिकोडी, और कहा ,'मर्जी आपकी, हमें क्या ।'

मन्दिर में दर्शन करने के बाद जब 'जुग-जुग जियो बेटा' कह कर माँ ने उसके सर पर हाथ फेरा,
उस समय वो और उसकी बीवी दोनों ये अंदाजा तक नहीं लगा पाये, कि माँ ने एक धुंधली आकृति भर देखी,
गणेशजी के दर्शन नहीं कर पाईं ........... उनकी आँख का मोतियाबिंद पिछले कुछ सालों में पक चुका था !

Wednesday, September 16, 2009

माफ़ी चाहूंगा ........,लेकिन......


"अंधा क्या चाहे- दो आँख"

यही पढ़ा है अब तक
सभी के मुंह से सुना भी यही है
मैं भी यही मानता रहा हूँ.......जो बचपन से सीखा , वैसा ही माना

अब ध्यान गया है......
"अंधा क्या चाहे- दो आँख", यह बात किसी नेत्रहीन ने तो निश्चय ही नहीं कही है
जिस ने भी कही, वह नेत्रहीन नहीं था...हाँ, दृष्टिहीन अवश्य रहा होगा

मैंने ऐसे नेत्रहीन व्यक्तियों को देखा है, जिनके पास ऎसी दृष्टि है,
जिससे अनेकों को मार्गदर्शन मिला है
दृष्टिहीन तो नेत्र होते हुए भी देख पाने में असमर्थ होता है

मुझे लगता है, इस बात को यूँ कहा जाना चाहिए था-"अंधा क्या चाहे- एक आँख" ।
नेत्रहीन को एक आँख भी मिल जाए तो उसे दिखने तो लगेगा ही
जिसके पास कुछ भी नहीं होता, वो पहले "कुछ" पाने की सोचता है...."सब कुछ" की नही !

माफी चाहूँगा......., लेकिन...........कुछ दिखा, और......यह लिखा !

Monday, September 14, 2009

जो बोले सो......

"जो बोले सो निहाल !"
"........................."

"जो बोले सो निहाल..."
"........................"

"आंसर दो बेटे,.....जो बोले सो निहाल....!"
"इंगलिश !!!!"

.....बेटे ने उत्तर दे दिया !

Sunday, September 13, 2009

नाच अंगुली, नाच......

नाच अंगुली, नाच !
विचारों की ताल पर, अभिव्यक्ति की लय पर
थिरक-थिरक ....नाच !!

पहले कागज़ पर चलती थी कलम ।
दो अंगुलियाँ और एक अंगूठा मिल कर पकड़ते थे जिसे ।
शेष दो अंगुलियाँ सहारा देती थीं जिनको ।
पूरा हाथ चलता था कलम के साथ !

आज 'की-बोर्ड' पर चलती हैं अंगुलियाँ ।
सारी अलग-अलग ।
सबने बाँट रखे हैं अपने-अपने अक्षर ।
और अंगूठा बढ़ा रहा दूरी,.... दे रहा 'स्पेस' !

चाहे नाचो अलग-अलग, चाहे थिरको अलग-अलग,
लेकिन शब्दों को बंटने ना देना, वाक्य को टूटने ना देना,
एकता की शक्ति पर,
विचारों और अभिव्यक्ति पर
आने ना पाए आंच,
नाच अंगुली, नाच .............!

Friday, September 11, 2009

समझदार को...............

"समझदार को इशारा ही काफ़ी है ।"
मैं नहीं जानता यह सबसे पहले किसने कहा ।
जिसने भी कहा, सोच-समझ कर ही कहा होगा ।
मुझे आज तक यह बात समझ में नही आयी ।
अरे भई, एक बात बताओ-
"समझदार ही होता , तो इशारे की भी ज़रूरत पड़ती ?"

Thursday, September 10, 2009

तारीख

ईश्वर ने दिन बनाए ।
इंसान ने हर दिन को एक अंक दे दिया ....... दिनांक !
ईश्वर का बनाया हर दिन एक नया चेहरा लगा कर आता है......
अंकों का चेहरा ! इंसान का दिया चेहरा !!
हम हर दिन को इंसान के दिए हुए चेहरे से पहचानते हैं ।
तारीख !
---------------

तारीख से हर इंसान जुड़ा है ।
ज़्यादातर इंसान तारीख पर याद किये जाते हैं- अरे ! आज तो उसकी वर्षगाँठ है !
कुछ तारीखें इंसान की वजह से याद रखीं जाती हैं ।
--------------

तारीखों और इंसान का रिश्ता यूँ ही बना रहेगा,
जब तक इंसान है !
जब तक तारीख है ।

Wednesday, September 9, 2009

असली रंग

चौराहे पर लाल बत्ती हो चुकी थी और बीचों-बीच ट्रेफिक पुलिस वाला खड़ा था ।
मैंने अपना स्कूटर रोका
स्कूटर लाल बत्ती को देख कर रोका, या पुलिस वाले को,... यह बताना मुश्किल है ।
...................

इधर-उधर देखा...होर्डिंग, दुकानें, आगे खड़ी कार पर कपड़ा मार कर पैसे मांगता लड़का..... ।
दाहिने नज़र पड़ी.....डिवाईडर के बीच लगे पौधों के ऊपर वाले पत्ते हरे , ....और नीचे के पत्ते लाल !
आश्चर्य हुआ, सब एक ही तरह के पौधों के पत्तों का रंग अलग-अलग !!!!
कहीं पौधे नकली तो नहीं ?!?
..................

ध्यान से देखा, पौधे नकली नहीं थे, उनके नीचे वाले पत्तों का रंग पान और गुटखों की पीक के कारण लाल था ।
लगा, "यही तो हमारे सुसभ्य चेहरे का असली रंग है !"

Monday, September 7, 2009

श्राद्ध ? !!!

दादाजी खिचड़ी खाते थे,
क्योंकि उनके दांत नही थे...
किसको परवाह, किसको फुर्सत,
कौन बत्तीसी लगवाता.....!

उनके श्राद्ध पर छत की मुंडेर पे
काला कौवा आता है,
बड़े मज़े से खीर खाता,
दादा तक है पहुंचाता...............!

Sunday, September 6, 2009

प्रणाम गुरूजी

" स्स ..............आ................लों" ने कल मेरी ब्रॉड बैंड लाइन दुरुस्त कर दी होती, तो मैं अपने समस्त गुरुओं
को "शिक्षक दिवस" पर प्रणाम तो कर लेता !

मेरी शुरू की भाषा पर एतराज़ तो नहीं न आपको ?
ये भाषा दुनिया ने सिखाई है ।
दुनिया तो सबसे बड़ी "गुरु" है भाई !

प्रणाम गुरूजी !

पहले कुल्ला कर लूँ भई......!

कहते हैं , जब खाने में कुछ कड़वा आ जाए , तो बोलने की बजाय पहले कुल्ला कर लेना चाहिए ।
'सब से तेज़' का दावा करने वाले ब्रॉड बैंड ने पूरे दस दिनों तक मेरा बैंड बजाये रखा ।
शिकायत दर्ज करने वाले कॉल सेंटर से ले कर विभाग के उच्च अधिकारी सब
एक दूसरे के पाले में फुटबाल फेंकते रहे , किसी के पास कोई जवाब नहीं था, कि हुआ क्या है ।
प्रेस का हवाला देने के बाद ये हाल है !
सच है,"सारी दुनिया इसलिए चल पा रही है, कि कुछ गिने-चुने काबिल लोग पूरी ईमानदारी से अपना काम
कर रहे हैं ।"
कड़वा लगा ना ?
इसीलिए कह रहा था, " पहले कुल्ला कर लूँ भई...! "

Thursday, August 27, 2009

भाषा

किसी ने बताया-
"भाषा एक माध्यम है"......अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने का।

दुनिया ने सिखाया-
"भाषा एक औजार है"......दूसरों से अपने काम निकलवाने का।

असल में पाया-
"भाषा एक हथियार है".......दूसरों को ठिकाने लगाने का।

दुनिया

सबसे बड़ा रोग- "......क्या कहेंगे लोग !"

Tuesday, August 25, 2009

"तेरी गलती", मेरी परिभाषा !

हैसियत

पैसे वाला घर। इकलौते बेटे विवेक की मंगनी की रस्म के बाद पार्टी अभी समाप्त ही हुई है।
घर की महिलायें आपस में बातें कर रही हैं। बड़ी ताईजी बोली -"मिसेज वर्मा को देखा, नए मंहगे लेटेस्ट मोबाइल से कैसी मटक-मटक कर बात कर रही थी !" चाची ने तपाक से जवाब दिया-" और वो सिंघानिया की मिसेज ,
सात- आठ हज़ार की साडी क्या पहन ली, खुद को हूर की परी ही समझ रही थी !" बुआ क्यों पीछे रहती, बोलीं-
"गुप्ता जी की वाईफ को देखा, दो लाख का डायमंड सेट उस पर ऐसे लग रहा था, जैसे भैंस के गले में जंजीर !"
"अरे ऐ गवरी बाई, तेरे गले में ये सोने की चेन कहाँ से आई रे ?" विवेक को बचपन से बेटे की तरह संभालती आ रही गवरी से नई-नई सास बनी अम्माजी ने ये सवाल क्या किया, कि सब की नजर उसी पर टिक गयी ।
"माफ़ करना अम्माजी , विवेक बाबा ने पहनाई है....मैंने तो मना भी किया..........."
बात पूरी होने से पहले घर में मानो भूचाल ही आ गया !

Monday, August 24, 2009

प्रयास कर देख रहा था, कि होली पर दैनिक भास्कर में छपा अपना बनाया एक कार्टून ब्लॉग पर डालूं ।
कार्टून ब्लॉग पर आ तो गया, लेकिन रंग बदल गया !
नेता रंग बदल लेते तो इतना आर्श्चय नही होता, मेरे आम आदमी के प्रतीक (काका)
ने भी रंग बदल लिया !
.....मतलब अब राजनीतिक पेंतरेबाजिओं से कहीं
आम आदमी भी अछूता नहीं रहा !
विडम्बना यह , कि कार्टून में रंग ना बदलने की बात कही जा रही है !

Sunday, August 23, 2009

गणेश तेरे कितने नाम

मन्दिर में श्री गणेशजी की शत नामावली पढ़ रहा था ।
सरसरी निगाह से पूरी पढ़ गया।
दिमाग में एक सवाल कौंधा-
हम हर वस्तु को अलग-अलग भागों में बाँट कर ही क्यों देख पाते हैं ?
ईश्वर को भी ?
"विभिन्न रूप" का कितना सुंदर बहाना है हमारे पास !

जय श्री गणेश !

ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

आज श्री गणेश चतुर्थी महापर्व है।
कोई कार्य प्रारम्भ करने का सबसे शुभ दिन !
कितना कुछ है प्रारम्भ करने के लिए !
तो स्वयं से ही क्यों न शुरुआत की जाए !!
पूरी क्षमता, ईमानदारी, जोश, उमंग और उत्साह के साथ !
सपनों को सच बनाने ,योजनाओं को साकार करने और सफलताओं की मंजिल पाने के दृढ़ निश्चय के साथ !!!!
तो आओ प्रारंभ करें !

जय श्री गणेश !

Saturday, August 22, 2009

जय श्री गणेश

ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

आज श्री गणेश चतुर्थी महापर्व है।
कोई कार्य प्रारम्भ करने का सबसे शुभ दिन !
कितना कुछ है प्रारम्भ करने के लिए !
तो स्वयं से ही क्यों न शुरुआत की जाए !!
पूरी क्षमता, ईमानदारी, जोश, उमंग और उत्साह के साथ !
सपनों को सच बनाने ,योजनाओं को साकार करने और सफलताओं की मंजिल पाने के दृढ़ निश्चय के साथ !!!!
तो आओ प्रारंभ करें !

जय श्री गणेश !

Friday, August 21, 2009

जय श्री गणेश !

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ : ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

सौभाग्यशाली हूँ कि सही समय पर सही काम के लिए सलाह और सुझाव मेरे पत्रकार मित्र श्री मंगलम ने मुझे दिए
और मैंने यह ब्लॉग लिखना प्रारम्भ किया । अभिव्यक्ति को एक और नई राह मिली ।
हार्दिक धन्यवाद मंगलम भाई ।
( वैसे कार्टूनिस्ट "धन्यवाद" कहे तो लगता है, जैसे भूत के मुंह से राम-राम !)
मैं जानता हूँ मुझे यह सलाह देने के बाद श्री मंगलम को कई लोग सलाह देंगे -
"अच्छी संगत में रहा करो मंगलम भाई !"

Saturday, August 15, 2009

Manoj Trivedi

Happy Independence Day to all Indians

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