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Friday, October 9, 2009

चिंगारी

वो रोजाना गली से बहार निकल कर आती ।
नुक्कड़ पर खड़े साईकिल रिक्शा के पास जा कर कहती-
'महिला कॉलेज चलो ।'
अधेड़ उम्र का रिक्शावाला चुप-चाप रिक्शा चलाना शुरू कर उसे कॉलेज छोड़ आता।
एक दिन रास्ते में रिक्शावाला पूछ बैठा- 'बेटी, कॉलेज में पढाती हो ?'
'नहीं,...... पढ़ती हूँ' उसने जवाब दिया ।
'लेकिन बेटी,....देख कर तो लगता है,......'
'हाँ चाचा, शादी के बाद पढ़ाई छूट गई थी, अब उनके गुजर जाने के बाद फ़िर से......'
'ओह....यहाँ कोई रिश्तेदार ?'
'हाँ चाचा, मेरे भइया-भाभी'
'भइया को देखा नहीं कभी साथ में'
'नौकरी पर जाते हैं सुबह-सुबह । पहले मुझे स्कूटर पर कॉलेज छोड़ कर जाया करते थे,
लेकिन रोजाना 20-25 रु. का खर्च ...प्राइवेट नौकरी में कहाँ तक करते... मैंने ही मना कर दिया ।'
'लेकिन अब रिक्शा किराया....?'
'मैं देती हूँ, मेरे पति की पेंशन मिल रही है ना मुझे'
'हूँ..अब समझा, क्या चाल चली तेरे भइया-भाभी ने !.............वैसे भी बेटी, कोंन कितने दिन निहाल करता है आजकल....'

रिक्शावाले की यह बात दुनिया की आग की पहली चिंगारी बन कर उसके दिमाग से जा चिपकी !

2 comments:

  1. सही कहा!!..कोंन कितने दिन निहाल करता है आजकल....'

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  2. बहुत सटीक अभिव्यक्ति है आज के सच पर शुभकामनायें

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