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Sunday, October 31, 2010

हैप्पी दीवाली

"अरे ये गली में अँधेरा कितने दिनों से है ?"
"जितने दिनों से ट्यूब लाइट नहीं जल रही"
"तुम भी अजीब हो ! यही तो मैं पूछ रहा हूँ, ट्यूब लाइट कितने दिनों से नहीं जल रही ?"
"दो महीने से"
"तुम्हे कैसे पता ?"
"इतने दिनों से मेरा दिल जल रहा है"
"तुम्हारे दिल से ट्यूब लाइट का क्या सम्बन्ध ?"
"बड़ा गहरा सम्बन्ध है भाई"
"वो क्या?"
"मेरे दिल में भी काफी देर तक फक-फक करके कभी रोशनी होती है, कभी अँधेरा.....
फिर रोशनी, फिर अँधेरा..........फिर रोशनी, फिर अँधेरा.......फिर..."
"अरे बस-बस, सब समझ गया"
"क्या खाक समझा,.....समझा होता, तो इतना समझाना पड़ता क्या ?"
"तो अब समझा दे भई !"
"अरे भई, रामजी जब अयोध्या वापस आये, तो घर-घर में घी के दीये जलाए गए थे.....दीवाली मनाई गयी थी "
"तो....?"
"तो क्या.......फिर दीवाली आ रही है, और हम गली में एक अदद ट्यूबलाइट के लिए दो महीनों से उम्मीद की मोमबत्ती जलाए बैठे हैं "
"ओह, तो विभाग के दफ्तर में बोलना चाहिए था न "
"वहां सब कान में तेल डाल कर बैठे हैं "
"तो भई, मेरी बात मान"
"क्या ....?"
"तू भी दिल जलाना छोड़ , दीये जला...... और वो भी तेल के ,....... और मस्ती से दीवाली मना !"
"बात तो सही है तेरी"
"तो बोल, हैप्पी दीवाली !"
"हैप्पी दीवाली !!"

Friday, October 22, 2010

वादा करो......

बतंगड़ नहीं बनाओ, तो बात शुरू करूँ ............!

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