एक था रावण.....
पराक्रमी, प्रकांड पंडित, समस्त कलाओं में निपुण,
दस दिशाओं पर एक साथ दृष्टी रखने वाला दशानन लंकेश !
सब कुछ अच्छा चल रहा था.....
एक दिन उसकी बहन अपने अपमान का समाचार ले कर उसके पास आई ।
रावण ने अपनी बहन के अपमान को चुनौती माना, और अपमान के प्रतिशोध का संकल्प ठाना ।
बस, यहीं से गड़बड़ हो गयी....!
बैठे-बिठाए लड़ाई मोल ले ली ।
उनसे, जिन्होंने उसकी बहन का अपमान किया था......
उनसे, जो उसके अपने थे, लेकिन उससे सहमत नहीं थे.....
उनसे, जो उससे सहमत तो थे, लेकिन अपने हितों को देखते हुए साथ देने को तैयार नहीं थे.....
उनसे, जो साथ तो दे रहे थे, मगर बेमन से.....!
आख़िर वही हुआ, जो होता आया है ।
सब के बीच बुरा बन गया बेचारा !
कौन कहता है, एक अकेले राम ने उसे मारा !
और तो और,....... लोग तो उसे आज तक मार रहे हैं !
बांस की खपच्चियों से खोखला पुतला बना कर उसमें भूसा और बारूद भर कर
मौत के घाट उतार रहे हैं ....
हर साल !
वही लोग....दस मुंह, दस बात ....लेकिन,.....
वो अकेला ही कहलाया दशानन !
एक था रावण.....!
११ वें मूंह से कथा सुन कर अच्छा लगा. मस्त लिखते हो भाई!!! बधाई... :)
ReplyDelete"आख़िर वही हुआ, जो होता आया है ।
ReplyDeleteसब के बीच बुरा बन गया बेचारा !"
आपने कुछ कुछ मेरे ही मन भावनाएं व्यक्त कर दी !
बहुत श्रेयकर लगी आपकी यह रचना ....!
मेरे साधुवाद एवं शुभकामनायें स्वीकार करें !
(सागर )