Followers

Sunday, September 13, 2009

नाच अंगुली, नाच......

नाच अंगुली, नाच !
विचारों की ताल पर, अभिव्यक्ति की लय पर
थिरक-थिरक ....नाच !!

पहले कागज़ पर चलती थी कलम ।
दो अंगुलियाँ और एक अंगूठा मिल कर पकड़ते थे जिसे ।
शेष दो अंगुलियाँ सहारा देती थीं जिनको ।
पूरा हाथ चलता था कलम के साथ !

आज 'की-बोर्ड' पर चलती हैं अंगुलियाँ ।
सारी अलग-अलग ।
सबने बाँट रखे हैं अपने-अपने अक्षर ।
और अंगूठा बढ़ा रहा दूरी,.... दे रहा 'स्पेस' !

चाहे नाचो अलग-अलग, चाहे थिरको अलग-अलग,
लेकिन शब्दों को बंटने ना देना, वाक्य को टूटने ना देना,
एकता की शक्ति पर,
विचारों और अभिव्यक्ति पर
आने ना पाए आंच,
नाच अंगुली, नाच .............!

3 comments:

  1. आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.

    भाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.

    ReplyDelete
  2. बहुत उम्दा, बेहतरीन!!

    ReplyDelete

Pages