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Monday, September 7, 2009

श्राद्ध ? !!!

दादाजी खिचड़ी खाते थे,
क्योंकि उनके दांत नही थे...
किसको परवाह, किसको फुर्सत,
कौन बत्तीसी लगवाता.....!

उनके श्राद्ध पर छत की मुंडेर पे
काला कौवा आता है,
बड़े मज़े से खीर खाता,
दादा तक है पहुंचाता...............!

5 comments:

  1. बहुत मार्मिक. मन को आन्दोलित करती रचना.

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  2. कम शब्दों मे बड़ी तीखी और तार्किक बात..शायद कुछ लोग थोड़ी सी सीख लें अभी से..

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  3. लेखनी प्रभावित करती है.

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  4. सार्थक रचना ।

    चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल

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  5. वाह ! बहुत मर्मस्पर्शी !

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