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Friday, August 20, 2010

सुप्रभात !

'धत तेरे की'
'.....क्या हुआ ?'
'सारा मूड ख़राब कर दिया'
'किसने ?'
'इस बिस्किट ने'
'बिस्किट...? ...इसने क्या किया.......?'
'कहा ना, सारा मूड ख़राब कर दिया'
'....लेकिन कैसे ?'
'अरे ये भी कोई बिस्किट है ?'
'अब बोल भी दो'
'इतना ढीला-ढीला.......'
'ढीला-ढीला नहीं, सीला-सीला बोलो'
'हाँ वही...!'
'मगर बारिश में तो बिस्किट सील ही जाता है'
'मगर हमें तो बिस्किट कुरकुरा-कड़क ही अच्छा लगता है'
'भई, कड़क तो सड़क होती है '
'हाँ-हाँ उतना ही कड़क'
'लेकिन बारिश में तो सड़क भी कड़क नहीं रहती, वो भी बिस्किट बन जाती है'
'अच्छा-अच्छा अब तुम मूड ख़राब मत करो'
'क्यों, सड़क क्या मैंने बनाई है ?'
'नहीं,......मगर चाय तो बनाई है'
'..तो पीलो ना...'
'वाह !'
'क्या हुआ ?'
'भई, बिस्किट और सड़क भले ही कड़क न हो, लेकिन चाय बड़ी कड़क है !!'
'तो अब मूड कुछ सुधरा ?'
'बिलकुल-बिलकुल !!'
'चलो,.....हमारा दिन सुधरा !'

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